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मालेगांव बम विस्फोट मामला

मालेगांव बम विस्फोट मामला

मालेगांव बम विस्फोट मामला 29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में हुए एक आतंकवादी हमले से संबंधित है।

मामले की पृष्ठभूमि

29 सितंबर, 2008 को, रमजान के महीने और नवरात्रि से ठीक पहले, मालेगांव के मुस्लिम-बहुल क्षेत्र में रात लगभग 9:35 बजे एक बम विस्फोट हुआ। यह विस्फोट एक LML फ्रीडम मोटरसाइकिल पर लगाए गए एक तात्कालिक विस्फोटक उपकरण (IED) के कारण हुआ, जिसमें छह लोगों की मृत्यु हुई और 95 से 101 लोग घायल हुए। विस्फोट एक मस्जिद के पास हुआ, जिससे सांप्रदायिक संवेदनशीलता और बढ़ गई।

जांच और शामिल एजेंसियां

मामला शुरू में आजाद नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था और बाद में 21 अक्टूबर, 2008 को महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) को हस्तांतरित कर दिया गया। 2011 में, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने जांच अपने हाथ में ली। ATS ने आरोप लगाया कि यह हमला अभिनव भारत नामक हिंदू संगठन के सदस्यों द्वारा सांप्रदायिक तनाव पैदा करने और मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग को आतंकित करने की साजिश के तहत किया गया था।

अभियुक्त और आरोप

सात व्यक्तियों पर आरोप लगाए गए, जिनमें पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि उन्होंने मालेगांव की मुस्लिम आबादी को निशाना बनाकर विस्फोट करने की साजिश रची ताकि सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़े और राज्य प्राधिकरण को चुनौती दी जाए।

मुकदमा और फैसला

मुकदमा 2018 में शुरू हुआ और 19 अप्रैल, 2025 को समाप्त हुआ, जिसमें 31 जुलाई, 2025 को मुंबई की विशेष NIA अदालत ने फैसला सुनाया। अदालत ने साक्ष्य की कमी का हवाला देते हुए सभी सात अभियुक्तों को बरी कर दिया। मुख्य कारणों में यह शामिल था कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि विस्फोट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर की थी, और साक्ष्य में विसंगतियां थीं, जैसे कि हेरफेर किए गए मेडिकल प्रमाणपत्र और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत अमान्य अनुमोदन।

प्रमुख मुद्दे और अदालत के अवलोकन

अदालत ने जांच में प्रक्रियात्मक अनियमितताओं को नोट किया, जिसमें एक ATS अधिकारी द्वारा साक्ष्य लगाने के आरोप शामिल थे। इसने जोर दिया कि “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता” और केवल संदेह या जनता की धारणा साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकती। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष अभियुक्तों और बम विस्फोट के बीच स्पष्ट संबंध स्थापित नहीं कर सका, जिसके चलते अभियुक्तों को संदेह का लाभ दिया गया।

कानूनी प्रावधान

2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले की जांच और मुकदमे के दौरान निम्नलिखित कानूनी प्रावधान लागू किए गए:

1. गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम, 1967 (UAPA): 10 अक्टूबर, 2008 को आतंकवाद से संबंधित आरोपों को संबोधित करने के लिए लागू किया गया। हालांकि, बाद में अदालत ने फैसला दिया कि दोषपूर्ण अनुमोदन आदेशों के कारण UAPA लागू नहीं किया जा सकता।

2. महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 (MCOCA): अभिनव भारत को एक “संगठित अपराध सिंडिकेट” के रूप में वर्णित करते हुए संगठित अपराध के आरोपों को संबोधित करने के लिए लागू किया गया।

3. भारतीय दंड संहिता (IPC): विस्फोट से संबंधित हत्या, हत्या का प्रयास और आपराधिक साजिश जैसे अपराधों को कवर करने के लिए विभिन्न धाराएं लागू की गईं।

परिणाम और प्रतिक्रियाएं

बरी किए जाने से विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आईं। पीड़ितों के समर्थकों ने निराशा व्यक्त की, यह उजागर करते हुए कि घायलों को अदालत में अपनी चोटें दिखानी पड़ीं। कुछ राजनीतिक हस्तियों, जैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, ने फैसले का समर्थन किया, यह दावा करते हुए कि यह अभियुक्तों के लिए न्याय सुनिश्चित करता है, जिन्हें लंबे समय तक कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ा। अदालत ने एक ATS अधिकारी के खिलाफ साक्ष्य लगाने के आरोपों की जांच का आदेश भी दिया, जो जांच की अखंडता पर चिंताओं को दर्शाता है।

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